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Rose Exihibition-2010, Bhopal

Tuesday, January 23, 2007

A Mysterious Voice

वह रात के गहरे अंधेरे और निविड़ सन्नाटे में

मेरा नाम , मेरे कान में पुकारती है ...

जब मैं उसकी धीमी और निश्चिंत साँसों को,

उसके सीने से लग कर सुन रहा होता हूँ ...

उसकी आवाज़ कहीं दूर से,

किसी अंधेरी गुफा से आती हुई लगती है ...

उसकी आवाज़ में मेरा नाम आता है,

किन्ही दूसरे अर्थों में,

उसकी आवाज़ में,

मेरा नाम मुझसे अलग हो जाता है...

उसकी आवाज़ की अकुलाहट में

डूबा मेरा नाम,

मुझे बुलाता है.

उसके भीतर कहीं,

उसकी आवाज़ में

मेरा नाम, मेरा नहीं

उसका हो जाता है...

सच तो यह है की

मैं भी मेरा नहीं हूँ,

पता नहीं कब से उसका हूँ...

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