
मेरा नाम , मेरे कान में पुकारती है ...
जब मैं उसकी धीमी और निश्चिंत साँसों को,
उसके सीने से लग कर सुन रहा होता हूँ ...
उसकी आवाज़ कहीं दूर से,
उसकी आवाज़ में मेरा नाम आता है,
किन्ही दूसरे अर्थों में,
उसकी आवाज़ में,
मेरा नाम मुझसे अलग हो जाता है...
उसकी आवाज़ की अकुलाहट में
डूबा मेरा नाम,
मुझे बुलाता है.
उसके भीतर कहीं,
उसकी आवाज़ में
मेरा नाम, मेरा नहीं
उसका हो जाता है...
सच तो यह है की
मैं भी मेरा नहीं हूँ,
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