कल वह चला गया। उसका यहाँ आना और जाना बिल्कुल वैसा ही था जैसे शाँत समुद्र में ज्वार भाटे का आना जाना... ज्वार भाटे भी नियमित रूप से आते हैं लेकिन हम हमेशा मन ही मन सोचते हैं कि कहीं कुछ अनोखा, कुछ विचित्र सा घट सकता है, इन गगनचुम्बी लहरों के पीछे... लहरों के पीछे कभी कुछ नहीं घटित होता है। उफान थमने पर समुद्र फिर से वैसा ही शाँत, धीर-गम्भीर दिखने लगता है जैसे कभी कुछ हुआ ही नहीं हो। पर क्या वास्तव में ऎसा होता है? कहीं कुछ घटित नहीं होता, कहीं कुछ नहीं बदलता..! नहीं, घटित होता है, बदलता है, लेकिन वह समुद्र की छाती में भीतर ही भीतर सुलगता है, फिर कभी बाहर आने के लिए, समुद्र की निस्सीम नीरवता को भेद कर।
शाँत समुद्र को देख कर कभी किसी बड़ी लहर के आने का अन्देशा, उत्सुकता और इंतजार हमेशा बना रहता है, वैसा ही भ्रम अभी भी मुझे कई दफ़े होता है। ऎसा प्रतीत होता है, मानो, वह यहीं कहीं आसपास है, कुछ कह रहा है या सामने के दरवाजे से अभी कमरे के अन्दर आ जाएगा। यह जानते हुए कि यह कोरा भ्रम है, फिर भी इस भ्रम में अपने आपको डाले रहने में आनन्द आता है, सुख मिलता है। क्या हम सभी के नितांत अपने अपने भ्रम नहीं हैं जिनमें हम अपने अपने सुखों का संसार बुनते गुनते रह्ते हैं?
अपने निविड़ अकेलेपन में यह भ्रम रिक्तता को भरता है, रात के अन्धेरे में बिस्तर पर उसके सजीव स्पर्शों का एह्सास कराता है। उसके सामने उससे बहुत कम बातें होती हैं, ऎसा लगता है जो कुछ कहना है उसके लिए कोई शब्द ही नहीं है, बातें एक दूसरे की मौन मंत्रणाओं को समझने से होती हैं। उसके सामने नहीं रहने पर बहुत सी बातें होती हैं. सब कुछ सुना देता हूँ उसे, कुछ भी नहीं छोड़ता. सारे गिले-शिकवे, अगणित इच्छाऎं, अपरिमित दु:ख, उसके साथ रहने का अपरिभाषित सुख, यहाँ तक की जिस भ्रम और अकेलेपन में यह सब कुछ होता है उसे भी बता देता हूँ...
लेकिन, भ्रम तो भ्रम ही है, कब तक सच का रूप धारण कर सकता है? प्रचंड इच्छाओं के हाहाकार से रेत के महल की भाँति भ्रम का संसार भी यथार्थ के मरूथल में कहीं विलीन हो जाता है। तब बचती हैं इस भ्रम में घटित होने वाली घटनाएं, जो अभी तक सुलझी, साफ-सुथरी दिख रहीं थी, अब इस कदर उलझ गई हैं कि इनके महाजाल से निकलना असंभव जान पड़ता है.
इच्छाओं और विचारों के इस भंवरजाल में फँसने के बाद की स्थिति बिल्कुल वैसी ही हो जाती है जैसे मछुआरे के जाल में फँसी मचली की, जो जाल से निकलने के लिए हर बार इस उम्मीद से छलाँग लगाती है और वापस जाल में आ गिरती है कि इस बार तो शायद मुक्ति मिल ही जाए. उस नादान को तो यह भी मालूम नहीं होता कि यह निर्मोही मछुआरा ही उसका परम मुक्तिदाता है जो उसे हर तरह के जाल से हमेशा के लिए मुक्त कर देगा...