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Rose Exihibition-2010, Bhopal

Sunday, November 16, 2008

एक चाहत


मैं चाहता हूँ कि
हम अगले जनम में
चिड़िया बन जाएं.
क्योंकि, तब हमारे पास
उड़ने के लिए इस अनंत
गगन की गहराइयाँ होंगी.
जहाँ हम साथ-साथ रह सकेंगे
साथ साथ दाना चुगने जा सकेंगे
अपना घोंसला बनाने के लिए
खर-पतवार और तिनके चुनने की
मशक्कत साथ साथ कर सकेंगे.
तब हमें किसी वैसे घर की
ज़रूरत नहीं पड़ेगी
जो घर कम,
गोदाम ज्यादा लगता है.
हमारे घोंसले यानि घर में
सिर्फ़ दो ही सामान रहेंगे,
तुम और मैं यानि हम.
सर्दियों में हम एक-दूसरे के लिए
कम्बल भी बन जाएंगे.
बारिश में खुले आकाश में
साथ साथ भीगते हुए घूमेंगे.
बारिश के बाद
सफेद बादलों से झरती धूप में
अपने फरों को सुखाएंगे.
तब तुम्हें भी कहीं जाने की जल्दी नहीं होगी,
और मुझे भी ऎसा नहीं लगेगा कि
बस आने वाले कुछ पलों बाद
तुम्हारा साथ छूटने वाला है
और तब हमारे पास
किसी सामाजिक मान्यताओं की
सीमा तोड़ने की बाध्यता भी नहीं होगी.
और तब हमारी नैतिकता पर
ना तो हम कोई सवाल उठाएंगे
ना ही कोई दूसरा...

2 comments:

Amit K Sagar said...

एक अच्छी रचना. वाकई सुंदर. वधाई. जारी रहें.

Anonymous said...

बहुत अच्छा प्रयास है. काश आपका सपना पूरा हो जाये. इसी तरह लिखते रहो दोस्त.