...RANDOM...

Rose Exihibition-2010, Bhopal

Thursday, October 30, 2008

जाने अनजाने

तुम्हें,
देखा नहीं, पर अनदेखा नहीं है तू
जाना नहीं, पर अनजाना नहीं है तू
चाहा नहीं, पर अनचाहा नहीं है तू
सुना नहीं, पर अनसुना नहीं है तू
तुमसे,
कुछ कहा नहीं, पर कुछ भी अनकहा नहीं है
तुम,
कहीं नहीं हो, पर हर तरफ हो
सपना हो, पर कल्पना नहीं हो तुम...

2 comments:

मुकेश कुमार तिवारी said...

अजीत,

स्वागत है चिट्ठा जगत में सपने और कल्पना के भेद पर अच्छी बात कही है.

आप मुझे भी पढ सकते है कविता मेरी रुचि है.

मुकेश कुमार तिवारी

Ajit Singh said...

मुकेश जी,

आप ने मेरी कविता पढ़ी और उस पर अपनी राय दी, यह सुखद लगा. मैनें आपके ब्लॉग पर आपकी कविताएं पढ़ीं, अच्छी लगीं. कविताओं पर अपनी राय अवश्य दूंगा.

अजित...