जीवन है भ्रम का
सुख - दुख
आशाएं, अभिलाषाएं
रूप हैं सब इसकी।
मुक्ति व्यक्ति को मिल न सका
कभी इच्छाओं की लहरों में
भावनाओं के समुद्र में।
इच्छाओं ने है फंसाया
रिश्ते नातों के भंवर में।
कौन किसी का है हो सका
इस जग में
क्या कोई उसे है मिल सका
चाहा जिसे इस जग में ।
नहीं मिलता यहाँ चाहने से कुछ
भीख न मिलती प्यार की
माँगने से भी है नहीं कुछ मिलता
इस जग में है सब कुछ बिकता।
लगा लो मोल किसी का
है अगर गाँठ में मुद्रा।
पर,
प्रेम जो अपने भीतर से उपजे
किस बाज़ार में बिक पाए
क्या कोई उसका मोल लगाए
कितनी मुद्रा दे पाए ?
जीवन है भ्रम का
है प्रेम नहीं अलग इससे
जीवन में है प्रेम
मगर,
जीवन है भ्रम का...
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