देश की आज़ादी के बाद उभरे साहित्यकारों में डॉ. धर्मवीर भारती का एक विशिष्ट स्थान है। 'कनुप्रिया' भारती की अद्वित्तीय काव्य कृति है। कई साहित्य विश्लेषकों ने 'कनुप्रिया' और भारती के नाटक 'अंधायुग' की तुलना एक दूसरे से की है। 'कनुप्रिया' में राधा का प्रेम है। 'अंधायुग' में युद्ध की विनाशलीला का विरोध है। कविता की विधा में भारती के भावुक और रोमांटिक विचारों का स्पष्ट दर्शन होता है। भारती के अधिकांश साहित्य में भावुकता और रोमांस का पुट है। उनके सारे चिंतन और दर्शन में भी यह बात साफ झलकती है। 'कनुप्रिया' भारती के मौलिक स्वभाव का दर्पण है। 'कनुप्रिया' की राधा कृष्ण को प्यार करती है, लेकिन वह कृष्ण के युद्धरत रूप का विरोध करती है। इस कृति में भारती ने राधा के माध्यम से कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए गीता के उपदेशों को प्रेम के सामने तुच्छ बताते हुए उनकी सत्यता को भी चुनौती दे दी है।
'अज्ञेय' ने 'कनुप्रिया' को भारती की 'बुद्धिगत उपलब्धि' माना है। यहाँ बुद्धि पक्ष पर रागात्मक कृति का जबरदस्त प्रभाव है। 'कनुप्रिया' इसी रागात्मक पक्ष की बहुत ही भावुक और सशक्त अभिव्यक्ति है। प्रभाकर श्रोत्रिय ने 'कनुप्रिया' को भारती की शीर्षस्थ कृति बताया है।
डॉ. धर्मवीर भारती बीसवीं सदी के हिन्दी साहित्य के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं। उनकी कृतियों में 'कनुप्रिया' भी ऎसा ही एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर है।
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